लखनऊ की ऐतिहासिक जमुना झील यानि मोती झील की बदहाली दूर होने वाली नहीं है। एक ओर समृद्ध झील सूख चुकी है तो दूसरी ओर इस पर बिल्डरों की अब इस पर बुरी नजर है। जहां सरकारी उपेक्षा से इसके जीर्णोद्धार की उम्मीदें अब खत्म हो चुकी है इसके वहीं देखिये यहां के स्थानीय निवासियों ने इसे बचाने के लिए क्या मुहिम चलाई है।
जमुनिया झील जिसे मोती झील के नाम से भी जानते हैं। झील के आस पास जामुन के पेड़ इस झील ने ही अपने आस पास के स्थानों को समृद्ध किया तभी इससे सटे हुए स्थान मोेती झील के नाम से जाना जाने लगा। इस झील ऐशबाग स्थित मोतीझील के सुन्दरीकरण की कवायद वर्ष 2006-07 से चल रही है। इसके सुन्दरीकरण पर 2006 में 20 लाख रुपए खर्च हुआ था। बाद शासन ने इसे भव्य व पिकनिक स्पॉट के रूप में विकसित करने का निर्णय लिया। इसके बाद एलडीए ने करोड़ों रुपए खर्च कर इसे संवारा। झील के पानी की सफाई के लिए यहां प्लाण्ट लगाया गया। प्लाण्ट कई वर्षों से खराब है। इसको कोई देखने वाला नहीं है। अब झील में पहले की तरह आवारा जानवरों व असमाजिक तत्वों का कब्जा हो गया है। एलडीए ने पहले पूरा काम कराया नहीं। इससे अब इस झील के सुन्दर होने की उम्मीदें पूरी तरह से खत्म हो चुकी हैं।
एलडीए ने झील के सुन्दरीकरण के बाद यहां स्थायी तौर पर माली तैनात किए थे। चारों तरफ सैकड़ों पेड़ लगाए गए थे लेकिन अब यह बचे ही नही हैं। कुछ समय तक तो मालियों ने काम किया। इसके बाद धीरे धीरे वह सभी यहां से चले गए। कई वर्षों से यहां न कोई माली है और न एलडीए का कोई दूसरा जिम्मेदार अधिकारी इसे देखने आया। इसकी जगह शाम को अराजक तत्व बैठकर शराब पीते हैं।
जमुना झील निवासी कल्याण समिति ने इसकी बदहाली के लिए एलडीए को कई पत्र भी लिखा है। झील को संरक्षित व सुरक्षित कराने की मांग की है। समिति ने साफ लिखा है कि झील पूरी तरह से बर्बाद हो गयी है। अगर इस पर ध्यान नहीं दिया गया तो इसका वजूद खत्म हो जाएगा। इन सबके बावजूद स्थानीय निवासियों के प्रयास एवं योगदान से इस झील को संवारने का प्रयास किया जा रहा है इन सबने मिलकर झील की साफ सफाई एवं संरक्षण का जिम्मा स्वयं ही उठाया है-
ऽ लखनऊ की मोती झील बदहाली की कगार पर
ऽ सूखी चुकी झील, गंदगी की है भरमार
ऽ बिल्डरों व अतिक्रमणकारियों की भी बुरी नजर
ऽ प्रशासन की उपेक्षा लेकिन स्थानीय निवासियों ने उठाए ठोस कदम